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Wednesday 26 November 2014

जूते और टोपी



























चापलूसी के लिए दाखिल हुए चाटुकार

सबसे पहले मुखालफत की जूतों ने
रुक गये-ठिठक कर-पैरों से निकाले जाते ही
एकजुट हो गये
दरवाजे पर
इंकार किया उन्होंने
धूल चाटने से

सिर चढ़ी टोपियाँ गयीं साथ
इसीलिये उछाली गयीं भरे दरबार में

फर्शी सलाम बजाते हुए
गिरीं कई-कई बार
उनके कदमों पर

खुद्दार थे मुई खाल के जूते
जो डटे तो डेट रहे अन्त तक

हिनहिनाती रहीं टोपियाँ
राजा साहब की हाँ में हाँ मिलाकर

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