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Sunday 22 March 2015

सुबह की सभा में
























कहिए जनाब, क्या हालचाल है?
 लीजिए, चा पीजिए

क्या यह सच है
कि जो कुछ सहा जा रहा है आत्मा की सतह पर
बर्फ के मानिंद
उसके नीचे एक आग है?

क्या यह सच है
कि हवाएं रास्ता बदल रही हैं धर्मग्रन्थों के बीच
खुफियागीरी करते हुए
लोग फिंगर-प्रिंट बचाने के लिए दस्तानों में छुपा रहे हैं अपने हाथ,
वक्त महापुरुषों के बयानों के खंजर से
काटा जा रहा है - मासूम मेमने की तरह
क्या यह सच है
कि पेड़ अपनी चुप्पी के खिलाफ
हरहरा रहे हैं पूरी ताकत से?

क्या यह सच है
कि आकाश के अनंत विस्तार को
छोड़ते हुए सहमी हुई हैं चिड़ियाँ,
चील और गिद्ध रद्द कर रहे हैं- अपनी उड़ानें,
टोपियों की चिन्ता में संसद मुब्तिला है बहस में
शांति-कपोत खून में लथपथ पड़ा है -
दुनिया के नक्शे पर
एक बड़े विस्फोट की तैयारी चल रही है
अंदर ही अंदर
राजनीति की आरी से काटा जा रहा है आदमी
बोलिए साहब क्या यह सच है?

अगर यह सच है
तो फौरन से पेश्तर बर्दाश्त की हद से बाहर निकलिए जनाब

बातों के परचम लहराइये हवा में
खिडकियाँ खोल दीजिए-सबसे पहले
अपनी डायरी में देखिए - क्या कहीं कुछ दबा है
अतीत के काले सफों में / रंगहीन तितली-सा / इतिहास के साए में

बेटों से कहिए कि वे
जूते कसें / अफलातूनों की तरह ‘‘चुम्मा-चुम्मा’’ सुनते रहें
बीवियों के पहलुओं में छुपकर,

आगे की लड़ाई सच बचाने के लिए नहीं बुजुर्गवार,
भीतर की दहशत के खिलाफ लड़ी जायेगी-पहले
खबरों में फंसा आदमी इन दिनों
बहुत बेचैन है जनाब,

सावधान रहिए - उसके दियासलाई दिखाने भर की
देर है.

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