लाखोँ-करोड़ों बेमतलब की
चीजों के
बीच
कहीं न कहीं है सब के मतलब की
कोई न कोई चीज़।
परम्पराओं के इतिहास में
घटती-बढती रही है पैरों की नाप
कहीं न कहीं है सब के मतलब की
कोई न कोई चीज़।
परम्पराओं के इतिहास में
घटती-बढती रही है पैरों की नाप
लेकिन जूते
जहाँ
थे
वहीँ
हैं
आज
भी
जूते
कहीं
भी
रहें
कभी नहीं भूलते अपनी औकात को
चाल से चाल – चलन तक
अकड़ नहीं छोड़ते जूते
अमीरों के पैरों में जूते प्रतिष्ठा हैं
बेहिसाब लतियाए जाते है गरीबों के पैरों में
लाजबाब निष्ठा के प्रतीक जूते
कितने भी बदरंगे क्यों न हो जायें
साथ नहीं छोड़ते पैरों का
सिलाई खुले या फट जाए
जूते ढीठ की तरह
मुँह खोलकर हँसते है ज़माने पर
कभी नहीं भूलते अपनी औकात को
चाल से चाल – चलन तक
अकड़ नहीं छोड़ते जूते
अमीरों के पैरों में जूते प्रतिष्ठा हैं
बेहिसाब लतियाए जाते है गरीबों के पैरों में
लाजबाब निष्ठा के प्रतीक जूते
कितने भी बदरंगे क्यों न हो जायें
साथ नहीं छोड़ते पैरों का
सिलाई खुले या फट जाए
जूते ढीठ की तरह
मुँह खोलकर हँसते है ज़माने पर
आरक्षणजीवी
है दलित जूते
जूते लामबंद हो रहे है टोपियो के खिलाफ
जूते चरमरा रहे हैं
चूं-चूं कर रहे हैं जूते
जूते काटने लगे हैं
पैरों में गड़ रहे हैं जूतो के पैने दाँत
जूते बदल रहे हैं अपनी चाल
राजनीति में दामाद की तरह पूजे
जा रहे हैं जूते
वह वक्त जल्द आयेगा जब
दुनिया देखेगी जूतो का कमीनापन
तब कोई नहीं जुतिया पायेगा जूतो को।
जूते लामबंद हो रहे है टोपियो के खिलाफ
जूते चरमरा रहे हैं
चूं-चूं कर रहे हैं जूते
जूते काटने लगे हैं
पैरों में गड़ रहे हैं जूतो के पैने दाँत
जूते बदल रहे हैं अपनी चाल
राजनीति में दामाद की तरह पूजे
जा रहे हैं जूते
वह वक्त जल्द आयेगा जब
दुनिया देखेगी जूतो का कमीनापन
तब कोई नहीं जुतिया पायेगा जूतो को।
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