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Friday 24 October 2014

परिंदे

















उड़ान पर हैं परिंदे ...

कांपती-ठिठुरती हवा की ताल-लय पर
परिंदे गा रहे हैं आज़ादी के गीत
क्या देस-क्या परदेस

जल की सतह से बूंद-बूंद पानी चुगते परिंदे-
एक कुल एक कुटुंब हैं पृथ्वी के
भूगोल को नापते हुए ।

कभी नष्ट नहीं होगा उनका संघर्ष
इच्छाओं के अनंत आकाश में
शब्दातीत हैं उनकी उड़ान
नदियों की अतल गहराई में प्रतिबिम्बित
होती है उनकी गूंज
मासूम पारदर्शी परिंदे लिखेगें-
उगते सूरज की कहानी
अँधेरा बरसने से पहले-दूर कहीं
अदृश्य में गायब हो जायेगे परिंदे
भोर में उनके लौटने की उम्मीद
तैरती रहेगी पानी पर-पूरी रात

घने कोहरे में कहाँ चले जाते हैं परिंदे ?
कोई नहीं जानता
जैसे कोई नहीं जानता कि
लंबी नींद में जाने के बाद
देह छोड़कर कहाँ चली जाती हैं आत्माएं
कोई नहीं जानता ।

उड़ान पर हैं देह परिंदे
जीवन की नाव पल-प्रतिपल
बढ रही है धीरे-धीरे
परिंदे चीख रहे है और
कोई ताकत उनके साथ खेल रही है
मन बहलाने वाला खेल ।

1 comment:

  1. जैसे कोई नहीं जानता कि
    लंबी नींद में जाने के बाद
    देह छोड़कर कहाँ चली जाती हैं आत्माएं
    कोई नहीं जानता ।

    उड़ान पर हैं देह परिंदे
    जीवन की नाव पल-प्रतिपल
    बढ रही है धीरे-धीरे.....bahut sunderta s insani deh ko parindo s joda h,,kha rahti h deh hunesha chod deti apna astitav...pl pratipl khud s door hota jeevan kha samajh aata h...aatma ki aavaj sunna koi nahi chhahta..behad khoobsurat rachna

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